गीता पुरुषार्थ का संदेश देती है, पलायन का नहीं

इंदौर। हमारे जीवन में भी अनेक कुरुक्षेत्र बनते और बिगड़ते हैं, लेकिन गीता के संदेश हमें कर्मयोगी बनाने की ओर प्रवृत्त करते हैं। जीवन को गीता का साधक बनाकर अनुशासित ढंग से जीने की पद्धति तभी मिल सकती है, जब हम अपने अहम का विसर्जन कर अपनी भक्ति साधना में परम सत्ता के प्रति समर्पण का भाव रखेंगे। समाज और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन कब, क्यों और कैसे करें, इसका मंत्र गीता से ही मिलता है। गीता पुरुषार्थ का संदेश देती है, पलायन का नहीं। कोई भी बुद्धिमान या भौतिकवादी गीता का अनुशीलन किए बिना अपने जीवन को सार्थक नहीं बना सकता। गीता आधुनिक युग में उस खजाने की तरह है, जिसमें जीवन को सद्गुणों से श्रृंगारित करने के लिए रत्न रखे हुए हैं। ये विचार जगद्गुरु शंकराचार्य पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने गीता भवन में आयोजित गीता महोत्सव में व्यक्त किए।